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Tehzeeb Hafi: Urdu Poet

  • Writer: nupur maskara
    nupur maskara
  • Apr 26
  • 1 min read

Updated: Apr 26

पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा 

मैं भीग जाऊँगा छतरी नहीं बनाऊँगा 


मैं जंगलों की तरफ़ चल पड़ा हूँ छोड़ के घर 

ये क्या कि घर की उदासी भी साथ हो गई है

तुम्हें हुस्न पर दस्तरस है मोहब्बत वोहब्बत बड़ा जानते हो 

तो फिर ये बताओ कि तुम उसकी आंखों के बारे में क्या जानते हो 


ये ज्योग्राफिया, फ़लसफ़ा, साइकोलाॅजी, साइंस, रियाज़ी वगैरह

ये सब जानना भी अहम है मगर उसके घर का पता जानते हो ?

रुक गया है वो या चल रहा है हमको सब कुछ पता चल रहा है 

उसने शादी भी की है किसी से और गावों में क्या चल रहा है 


तेरा चुप रहना मेरे ज़ेहन में क्या बैठ गया 

इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया 

यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ 

जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया 


ये एक बात समझने में रात हो गई है 

मैं उस से जीत गया हूँ कि मात हो गई है 

किसे ख़बर है कि उम्र बस उस पे ग़ौर करने में कट रही है 

कि ये उदासी हमारे जिस्मों से किस ख़ुशी में लिपट रही है 


चेहरा देखें तेरे होंट और पलकें देखें 

दिल पे आँखें रक्खें तेरी साँसें देखें 





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