Zindadil Urdu Poets: A Mixed Bag
- nupur maskara
- Apr 30
- 4 min read
Kishwar Naheed
मोजे बेचती जूते बेचती औरत मेरा नाम नहीं
मैं तो वही हूं जिसको तुमने दीवार में चुनके
मिस्ले-सबा बेखौफ हुए
ये नहीं जाना
पत्थर से आवाज कभी भी दब नहीं सकती
मैं तो वही हूं, रस्मो-रिवाज के बोझ तले
जिसे तुमने छुपाया
ये नहीं जाना
रौशनी घोर अंधेरों से कभी डर नहीं सकती
मैं तो वही हूं
गोद से जिसकी फूल चुने
अंगारे और कांचे डाले
ये नहीं जाना
जंजीरों से फूल की खुशबू छुप नहीं सकती
मैं तो वही हूं, मेरी हया के नाम पे तुमने
मुझको ख़रीदा, मुझको बेचा
ये नहीं जाना
कच्चे घड़े पर तैर के सोहनी मर नहीं सकती
मैं तो वही हूं जिसको तुमने डोली बिठा के
अपने सर से बोझ उतारा
ये नहीं जाना
ज़हन गुलाम अगर है कौम उभर नहीं सकती
पहले तुमने मेरी शर्मो-हया के नाम पे खूब तिज़ारत की थी
मेरी ममता, मेरी वफा के नाम पे खूब तिज़ारत की थी
अब गोदों में और ज़हनों में फूलों के खिलने का मौसम है
पोस्टरों पर नीम बरहना
मोजे बेचती जूते बेचती औरत मेरा नाम नहीं है
Kaif bhopali
मोहब्बत में हमें मौत ने मारा
सच है मोहब्बत में हमें मौत ने मारा
कुछ इस में तुम्हारी भी ख़ता है कि नहीं है
सच तो ये है फूल का दिल भी छलनी है
हँसता चेहरा एक बहाना लगता है
सुनने वाले घंटों सुनते रहते हैं
मेरा फसाना सब का फसाना लगता है
Gulzar
आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं
मेहमाँ ये घर में आएँ तो चुभता नहीं धुआँ
यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता
कोई एहसास तो दरिया की अना का होता
आप के बाद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
आइना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
वो आइना हूं जो कभी कमरे में सजा था
अब गिर के जो टूटा हूं तो रस्ते में पड़ा हूं
है ज़िंदादिली दौलत सब ख़र्च न कर देना
शायद कभी काम आए थोड़ी सी बचा रखना
Munnawar Rana
ज़रा सी बात है लेकिन हवा को कौन समझाये,
दिये से मेरी माँ मेरे लिए काजल बनाती है
छू नहीें सकती मौत भी आसानी से इसको
यह बच्चा अभी माँ की दुआ ओढ़े हुए है
यूँ तो अब उसको सुझाई नहीं देता लेकिन
माँ अभी तक मेरे चेहरे को पढ़ा करती है
वह कबूतर क्या उड़ा छप्पर अकेला हो गया
माँ के आँखें मूँदते ही घर अकेला हो गया
चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है
सिसकियाँ उसकी न देखी गईं मुझसे 'राना'
रो पड़ा मैं भी उसे पहली कमाई देते
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
लबों पे उसके कभी बददुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती
अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की 'राना'
माँ की ममता मुझे बाँहों में छुपा लेती है
गले मिलने को आपस में दुआएँ रोज़ आती हैं
अभी मस्जिद के दरवाज़े पे माँएँ रोज़ आती हैं
ऐ अँधेरे देख ले मुँह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
लिपट को रोती नहीं है कभी शहीदों से
ये हौंसला भी हमारे वतन की माँओं में है
ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटूँ मेरी माँ सजदे में रहती है
यारों को मसर्रत मेरी दौलत पे है लेकिन
इक माँ है जो बस मेरी ख़ुशी देख के ख़ुश है
तेरे दामन में सितारे होंगे तो होंगे ऐ फलक़
मुझको अपनी माँ की मैली ओढ़नी अच्छी लगी
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है
घेर लेने को जब भी बलाएँ आ गईं
ढाल बनकर माँ की दुआएँ आ गईं
'मुनव्वर' माँ के आगे यूँ कभी खुलकर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती
मुझे तो सच्ची यही एक बात लगती है
कि माँ के साए में रहिए तो रात लगती है
Khwaja Meer Dard
जग में आ कर इधर उधर देखा
तू ही आया नज़र जिधर देखा
हम तुझ से किस हवस की फ़लक जुस्तुजू करें
दिल ही नहीं रहा है कि कुछ आरज़ू करें
अर्ज़-ओ-समा कहाँ तिरी वुसअ'त को पा सके
मेरा ही दिल है वो कि जहाँ तू समा सके
ज़िंदगी है या कोई तूफ़ान है
हम तो इस जीने के हाथों मर चले
तुझी को जो याँ जल्वा-फ़रमा न देखा
बराबर है दुनिया को देखा न देखा
मैं जाता हूँ दिल को तिरे पास छोड़े
मिरी याद तुझ को दिलाता रहेगा
सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ कभू रोना
कभू हँसना कभू हैरान हो जाना
मोहब्बत क्या भले-चंगे को दीवाना बनाती है
खुल नहीं सकती हैं अब आँखें मिरीजी में
ये किस का तसव्वुर आ गया ग़ैर के दिल में
न जा कीजिएगामेरी आँखों में रहा कीजिएगा






Heart-touching poetry. Urdu poetry are superb full of feelings.