Qasmi, Ahmad Nadeem: Urdu Poet
- nupur maskara
- Apr 22
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कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊंगा
मैं तो दरिया हूं समुंदर में उतर जाऊंगा
उन को क्या फ़िक्र कि मैं पार लगा या डूबा
बहस करते रहे साहिल पे जो तूफ़ानों की
जिस भी फ़नकार का शहकार हो तुम
उस ने सदियों तुम्हें सोचा होगा
कुछ खेल नहीं है इश्क़ करना
ये ज़िंदगी भर का रत-जगा है
उस वक़्त का हिसाब क्या दूं
जो तेरे बग़ैर कट गया है
तुझ से किस तरह मैं इज़हार-ए-तमन्ना करता
लफ़्ज़ सूझा तो मआ'नी ने बग़ावत कर दी
मैं कश्ती में अकेला तो नहीं हूं
मिरे हमराह दरिया जा रहा है
सारी दुनिया हमें पहचानती है
कोई हम सा भी न तन्हा होगा
किस दिल से करूं विदा तुझ को
टूटा जो सितारा बुझ गया है
शाम को सुब्ह-ए-चमन याद आई
किस की ख़ुशबू-ए-बदन याद आई






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